वर्धा, दि. 28 जुलाई 2021 : ‘अद्वैत चिंतनपरंपरा : समकालीन अर्थसंदर्भ’ विषय पर तरंगाधारित राष्ट्रीय संगोष्ठी में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति प्रो. रमेश कुमार पाण्डेय ने कहा कि आचार्य रेवतीरमण पाण्डेय परोपकारी और सन्यस्थ व्यक्ति थे। अद्वैत वेदांत को प्रतिपादित करते हुए उन्होंने इसे नई ऊंचाई प्रदान की है। प्रो. पाण्डेय ने रेवतीरमण पाण्डेय के जीवन-दर्शन और चिंतन दृष्टि पर विस्तार से चर्चा करते हुए अद्वैत वेदांत, शंकर वेदांत और आज के परिप्रेक्ष्य में उसके अर्थ संदर्भ को व्याख्यायीत किया।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के दर्शन एवं संस्कृति विभाग तथा काशी हिंदू विश्वविद्यालय के दर्शन एवं धर्म विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में आचार्य रेवतीरमण पाण्डेय की संस्मृति आयोजन में मंगलवार (27 जुलाई) को ‘अद्वैत-चिंतनपरंपरा : समकालीन अर्थसंदर्भ’ विषय पर आनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। दो सत्रों में आयोजित संगोष्ठी के प्रथम सत्र का स्वागत वक्तव्य हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने दिया। अपने उद्बोधन में उन्होंने संगोष्ठी में शामिल सभी प्रमुख वक्ताओं का स्वागत करते हुए उनके प्रति आभार ज्ञापित किया।
बीज वक्तव्य में दर्शन एवं धर्म विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रो. मुकुल राज मेहता ने कहा कि आचार्य रेवतीरमण पाण्डेय ने अपने लेखन से मानव प्रवृत्ति और परमतत्व में अद्वैत स्थापित करने का प्रयास किया। उन्होंने इन तीनों को एक ही सूत्र में पिरोकर इनमें एकत्व यानि अद्वैत स्थापित किया।
भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली, के सदस्य सचिव प्रो. सच्चिदानंद मिश्र ने कहा कि रेवतीरमण पाण्डेय अद्वैत परंपरा का ध्वजवाहक थे। उन्होंने अद्वैत चिंतन को प्राचीन परंपरा बताते हुए आचार्य शंकर, अरविंदो और विवेकानंद के वेदांत चिंतन की बात की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज के प्रो. देवकीनंदन द्विवेदी ने विज्ञान और अद्वैत वेदांत के संदर्भ में व्यावहारिक और पारमार्थिक चिंतन पर प्रकाश डाला। दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के प्रो. सभाजीत मिश्र ने कहा कि अद्वैत चिंतन को निरंतर और गतिमान प्रक्रिया बताते हुए विशाल वृक्ष की तरह इसकी जड़ें मजबूत हैं। गोवा विश्वविद्यालय के प्रो. गोरखनाथ मिश्र ने कहा कि मूल वेदांत और अद्वैत वेदांत के अंतर को समझने की आवश्यकता है। उन्होंने गौड़पादीय परंपरा के अद्वैत वेदांत पर प्रकाश डालते हुए इस परंपरा के विभिन्न 14 विद्वानों पर विस्तार से चर्चा की। संस्कृत विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. जगदीश नारायण तिवारी ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। विश्वविद्यालय के कुलगीत से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। रेवतीरमण पाण्डेय और संगोष्ठी में शामिल वक्ताओं का परिचय दर्शन एवं संस्कृति विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सूर्य प्रकाश पाण्डेय ने कराया। सत्र का संचालन डॉ. सूर्य प्रकाश पाण्डेय ने किया तथा धन्यवाद दर्शन एवं संस्कृति विभाग के अध्यक्ष डॉ. जयंत उपाध्याय ने ज्ञापित किया।
संगोष्ठी के दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि अद्वैत वेदांत की दृष्टि एकता को देखने और पहचानने की दृष्टि है। उन्होंने कहा कि प्रो. रेवती रमण पाण्डेय ने भारतीय बहुलतावादी दृष्टि को पहचाना और उसे समझा है। वे अद्वैत परंपरा के सफल भाष्यकार हैं। भारतीय ज्ञान आचार्य परंपरा का उल्लेख करते हुए कुलपति प्रो. शुक्ल ने कहा कि भारतीय ज्ञान आचार्य परंपरा का प्रभाव कम-ज्यादा रही है। यह निरंतरता के साथ चलती रही है। इस परंपरा का भारतीय और वैश्विक परिदृश्य है। उन्होंने कहा कि अद्वैत दृष्टि सर्वत्र है। इसे समग्रता में जानना आवश्यक है। उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा लिखित हिंद स्वराज का उल्लेख करते हुए कहा कि हिंद स्वराज में अद्वैत दृष्टि निखर कर प्रस्तुत होती है। कुलपति प्रो. शुक्ल ने प्रो. रेवती रमण पाण्डेय जी के प्रति अपनी प्रणामांजलि अर्पित करते हुए संस्मरणों को याद किया। उन्होंने कहा कि प्रो. पाण्डेय अपने छात्रों के साथ संवाद करते थे और छात्रों के सम्मान को अपनी उपलब्धि से जोड़कर देखते थे। इस प्रकार का पर्यावरण समकालीन शिक्षकों के लिए प्रेरणा का कार्य करता है।
संगोष्ठी मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए डॉ. हरि सिंह गौर सागर विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र विभाग के प्रो. अंबिकादत्त शर्मा ने कहा कि अद्वैत वेदांत सामाजिक स्वराज का दर्शन है। उन्होंने अद्वैतवादी दर्शन की व्याख्या कर उसकी भारतीय परंपरा में महत्ता को रेखांकित किया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के दर्शन एवं धर्म विभाग के प्रो. देवेंद्रनाथ तिवारी ने प्रो. रेवती रमण पाण्डेय के संस्मरणों को याद करते हुए कहा की पाण्डेय जी के शिष्य विश्व को प्रभावित कर रहे हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के दर्शन एवं धर्म विभाग के प्रो. अरविंद कुमार राय ने दु:ख और दु:ख निवृत्ति की चर्चा करते हुए कहा कि दु:ख सभी को होता है, दु:ख निवृत्ति एक महान प्रयोजन है। आत्मा को जाने बिना दु:ख निवृत्ति नहीं हो सकती, यह अद्वैत वेदांत का मूल तत्व है। उन्होंने कहा कि वैचारिक स्तर पर अद्वैत सत्ता को प्राप्त कर हम दु:खों का निवारण कर सकते हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. आनंद मिश्र ने प्रो. रेवती रमण पाण्डेय जी की रचना ‘वेदांत सिद्धांत मुक्तावली’ का उल्लेख करते हुए अजातवाद के सिद्धांत की चर्चा की। उनका कहना था कि विज्ञानवाद और रहस्यवाद का दर्शन ही अद्वैतवाद है। समकालीन राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संदर्भों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अद्वैत समता का दर्शन है। वर्तमान में जो वैषम्य या विषमताएं हैं, उन्हें अद्वैत के रास्ते से ही दूर किया जा सकता है।
इस सत्र का स्वागत वक्तव्य प्रो.ज्योत्स्ना श्रीवास्तव ने दिया। सत्र का संचालन दर्शन एवं संस्कृति विभाग के अध्यक्ष डॉ. जयंत उपाध्याय ने किया तथा दर्शन एवं संस्कृति विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सूर्य प्रकाश पाण्डेय ने आभार ज्ञापित किया। संगोष्ठी में अध्यापक, शोधार्थी और विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में सहभागिता की।