बिलासपुर शिशु अकादमी द्वारा 4 मार्च 2022 को सुबह 11:00 बजे आईएमए हॉल में नि:शुल्क थैलेसीमिया एवं सिकल सेल एनीमिया के प्रति जागरूकता शिवि आयोजन किया गया है। इसमें दिल्ली के उत्कृष्ट हेमेटोलॉजिस्ट एवं बोनमेरो ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डॉ गौरव खरेया द्वारा इस रोग से ग्रसित बच्चों के अभिवावकों को रोग के विषय में विस्तृत जानकारी दी जाएगी और बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन से जुडी हुई भ्रांतियों और समस्याओंका समाधान दिया जाएगा।
भारत की कुल जनसंख्या का ३.४ प्रतिशत भाग थैलेसीमिया ग्रस्त है तथा करीब 10 लाख बच्चे इस रोग से ग्रसित हैं।
संस्था की सचिव डॉ नमिता श्रीवास्तव ने बताया कि थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त-रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इस रोग में शरीर में लाल रक्त कण / रेड ब्लड सेल (आर.बी.सी.) नहीं बन पाते है और जो थोड़े बन पाते है वह केवल अल्प काल तक ही रहते हैं। इसकी
पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है। यह रोग न केवल रोगी के लिए कष्टदायक होता है बल्कि सम्पूर्ण परिवार के लिए कष्टों का सिलसिला लिए रहता हैं।
यह रोग अनुवांशिक होने के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार में चलता रहता हैं। इस बीमारी की सम्पूर्ण जानकारी और विवाह के पहले थैलेसीमिया एवम सिकल सेल एनीमिया से बचने के लिए लड़के और लड़की की स्वास्थ्य कुंडली मिलानी चाहिए। अगर माता पिता थैलेसीमिया या सिकल सेल एनिमिया से ग्रस्त है तो गर्भावस्था के समय प्रथम 3 से 4 माह के भीतर जांच करके होनेवाले बच्चे को यह रोग तो नहीं है इसका पता लगाया जा सकता है। विशेष एहतियात बरतने पर हम इसे आने वाली पीढ़ी में जाने से रोक सकते हैं।
थैलेसीमिया के लिये स्टेम सेल से उपचार की भी संभावनाएं हैं। इसके अलावा इस रोग के रोगियों के अस्थि मज्जा (बोन मैरो) ट्रांसप्लांट हेतु अब भारत में भी
बोनमैरो डोनर रजिस्ट्री खुल गई है। जिससे इस रोग से ग्रसित बच्चे लाभान्वित हो सकते हैं।
शिविर में किसी प्रकार की असुविधा से बचने के लिए डॉ संतोष गेमनानी से पूर्व संपर्क कर सकते हैं।